Sunday 22 April 2018

राष्ट्रवाद के भी 100 उजले और 100स्याह रंग होते हैं,आओ तुर्क़ी की बात करें!



बात करते हैं तुर्की की, तुर्क़ी के 100 साल पहले राष्ट्रपति  कमाल अतातुर्क को कौन नहीं जानता , कमाल अता तुर्क ने  मुस्लिम तुर्क़ी में   राजशाही जैसा और पारम्परिक या कहें दकियानूसी शासन ख़िलाफ़त का खात्मा कर यूरोपीय देशों के रंग ढंग वाला शासन/गणतंत्र स्थापित किया जिसमें मुसलमानों और ईसाईयों के तमाम धार्मिक चिन्हों को घर तक सीमित कर दिया और मुस्लिम देशों में सेकुलरवाद का मिसाल बना,कमाल अता तुर्क का सबसे बड़ा काम तुर्क़ी भाषा के आधुनिकीकरण में किया,अतातुर्क ने  अपने देशवासियों को  तुर्क़ी भाषा को रोमन वर्णमाला में लिखने में ही लिखने को मजबूर किया,अरबी लिपि खत्म कर दी .…..........इन बातों से अतातुक के लिए सहज ही सम्मान जगता है क्योंकि उसने तुर्क़ी को आधुनिक यूरोपीय देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया!
लेकिन अता तुर्क का राष्ट्रवाद काना,अपाहिज ,तंगदिल भी था , तुर्क़ी में तुर्क़ी भाषा को छोड़कर तमाम अन्य भाषाओं पर घमण्डपूर्ण रोक लगा दी,तुर्क़ी के कूर्द लोगों को कुर्द भाषा बोलने से,कूर्द में बोलने,गाने से आपराधिक मामलों तक की हद में मना कर दिया, 
एक नामी कूर्द सिंगर को 1990 के दशक में कूर्द भाषा में गाने पर जेल में ठोक दिया गया,एक कूर्द सांसद(बाद में मानव स्वतंत्रता का सखरोव पुरस्कार विजेता) लैला जाना  को सिर्फ कूर्द भाषा बोलने के कारण आलोचना ,अपराध का निशाना बनाया गया!
2002 के बाद तुर्क़ी को कुछ अक्ल आई और कूर्द ज़बान से कुछ बैन हटाये,कुर्दी में टीवी चैनल्स,अख़बार की छूट दी गयी!
पिछली सदी में ये तुर्क़ों /कमाल अता तुर्क का केवल राष्ट्रवाद था या बहुसंख्यकता का घमंड भी शामिल था?

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